बिहार में राहुल की पदयात्रा, वोट चोरी को संसद के बाद सड़क से देंगे चुनौती


विस चुनाव से पहले माकन की सरपरस्ती में कांग्रेस में टिकटें बेचने का खेल शुरू


-रितेश सिन्हा


बिहार में महागठबंधन सरकार के पक्ष में सर्वे आने के बाद कांग्रेस में टिकट बेचने वाला गिरोह सक्रिय हो गया हैं। बिहार में 17 अगस्त से शुरू हो रही राहुल गांधी की पदयात्रा ने टिकटार्थियों की संख्या में खासी बढ़त ला दी है। मृत पड़े कांग्रेस के अग्रिम संगठनों में जातीय और धर्म के नाम पर बने प्रकोष्ठों में पदाधिकारी बनने की बिहार में होड़ मची है। कांग्रेस का टिकट झटकने को लेकर कांग्रेसी किसी न किसी प्रकोष्ठ की चिट्ठी पकड़ने की जोर आजमाइश कर रहे हैं। माल दो और पद लो का खेल बुलंदी पर है। सबसे ज्यादा गदर किसान कांग्रेस, अल्पसंख्यक व पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा प्रकोष्ठ में है। राष्ट्रीय स्तर पर इस कारोबार को संगठन के प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल का खुला संरक्षण प्राप्त है।
आनन-फानन में ओबीसी प्रकोष्ठ का नए नवेले अध्यक्ष अनिल यादव उर्फ जयहिंद हैं। ये किसी जमाने में दवाई के नाम पर पुड़िया बांधते थे, कांग्रेस के छुटभैया नेता व पूर्व विधायक पीसी कौशिक के दाएं-बाएं हुआ करते थे। आज वे देशव्यापी ओबीसी में कांग्रेस का कारोबार देख रहे हैं। गांधी टोपी की बजाए लाल टोपी लगाकर कांग्रेसियों का हौसला तोड़ने का काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं। कभी कार्पोरेशन का चुनाव तक नहीं जीत सकने वाले जयहिंद कांग्रेस की जयहिंद करने में जुट गए हैं। कांग्रेस का गणित समझने के लिए राष्ट्रीय सचिव जितेंद्र बघेल इनके उस्ताद हैं। इनकी नियुक्ति और इनके कारनामे खासे चर्चा में हैं। ओबीसी विभाग ने एक नेशनल कमिटी बनाकर इसमें कई पूर्व सांसद, पूर्व विधायक समेत दो दर्जन से ज्यादा लोगों को शामिल किया है। इन वरिष्ठ नेताओं को पर्ची में नाम लिखवाकर जयहिंद अपने दर्शन दे रहे हैं।
इनका चुनावी कारोबार का एक ताजा मामला बिहार में हाईकमान की नजर में आ चुका है। महज 1 महीने पहले कांग्रेस में आए हुए शशिभूषण पंडित को ओबीसी प्रदेश का चेयरमैन बना दिया। पंडित ने भी संगठन को आर्थिक लाभ पहुंचाने की दृष्टि से गया जी जिले से बिहार सरकार में कद्दावर मंत्री व नीतीश के खास प्रेम कुमार के दामाद अमित चंद्रवंशी को ही कांग्रेस का टिकट थमाने की घोषणा कर दी। इस पर ओबीसी विभाग के जयहिंद की मौन स्वीकृति थी। यही वजह है कि पंडित और चंद्रवंशी के खिलाफ कोई कारण बताओ नोटिस तक जारी नहीं हुआ। जबकि मामला गया जी से पटना तक छाया रहा। प्रदेश प्रभारी व अध्यक्ष की बोलती बंद है। मामला तब बिगड़ा और सुर्खियों में आ गया जब गयाजी का जिला कांग्रेस का पूरा संगठन ओबीसी के नेताओं के साथ मुखर हो गया। कद्दावर नेता व प्रदेश के मंत्री प्र्रेम कुमार से दो-दो हाथ करने वाले और गयाजी के मजबूत दावेदन मेयर मोहन श्रीवास्तव और रजनीश कुमार झुन्ना के साथ प्रदेश अध्यक्ष पंडित का जबर्दस्त घेराव करते हुए राजेंद्र आश्रम में घुसने तक नहीं दिया गया। पंडित को बचाने में जुटे सरकार के काबीना मंत्री प्रेम कुमार के हस्तक्षेप के बाद उनको प्रशासन की मदद से पटना सकुशल पहुंचवा दिया गया।
बिहार में स्क्रीनिंग कमिटी के पहुंचने के बाद से उनकी कार्यशैली का खासा विरोध हो रहा है। स्क्रीनिंग कमिटी के सदस्यों के पास किन सीटों पर स्क्रीनिंग होनी थी, उनकी सूची ही नदारद थी। स्क्रीनिंग के नाम पर केवल झांसा दिया जा रहा है। आपको बता दें कि कांग्रेस कोषाध्यक्ष अजय माकन संगठन के मामले में शुरू से विवादों से घिरे रहे हैं। संगठन के मामले में वे अपनी निजी एजेंडे को प्राथमिकता देते हैं। वे बतौर स्क्रीनिंग चेयरमैन राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ में अपनी बंदरबांट से कांग्रेसियों का हौसला पस्त करने का कारनामा अंजाम दे चुके हैं, बारी अब बिहार की है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के खासमखास व आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले सांसद नासिर, प्रणव झा, गुरदीप सिंह सप्पल सरीखे नेताओं से कांग्रेसी पूछ रहे हैं कि माकन ने अब तक संगठन में कौन सा काम किया है कि हर बार इन्हीं को स्क्रीनिंग का जिम्मा सौंप दिया जाता है।
झारखंड प्रभारी रहते हुए भी माकन ने बड़ा गदर मचाया था। तब भी स्थानीय नेताओं ने इनका खुलकर विरोध किया था। तब दिवंगत अहमद पटेल ने माकन का बचाव करते हुए असम के सांसद को इनके साथ लगाया और झारखंड में कांग्रेस की गुटबाजी को शांत करवाया था। दिल्ली में भी कांग्रेस को साफ करने का कारनामा माकन अंजाम दे चुके हैं। आज भी प्रदेश कांग्रेस माकन के रिमोट से चल रहा है। माकन के रहते हुए कांग्रेस ने कार्यकर्ताओं से करोड़ों रूपए बतौर चंदा ऑनलाइन इकट्ठा किया था, वो भी इन्हीं के नाक के नीचे कहीं और ट्रांसफर हुआ था, जिस पर काफी हायतौबा मची थी। अब तक इसके हिसाब का अता-पता नहीं है। नतीजा फिर से वही ढाक के तीन पात।
17 अगस्त से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी सासाराम से बिहार में मतदाता अधिकार यात्रा प्रारंभ कर रहे हैं। यह लगभग एक सप्ताह तक चलेगी। बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लवारू का खेल देखिए, यात्रा जिन क्षेत्रों से होकर गुजरेगी, उसमें 58 सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस अपना मजबूत आधार मान रही थी। कांग्रेस के पर्यवेक्षक भी नियुक्त किए गए थे। तीन दर्जन से अधिक सीटों पर राहुल की यात्रा का रूट मैप नहीं है। राहुल के रूट मैप में प्रमुखता से राजद के अधिकार क्षेत्र वाली सीटों पर पदयात्रा होगी। पार्टी का मानना है कि राहुल की यात्रा न्याय, समानता, लोकतंत्र की रक्षा और जनसंवाद के साथ कांग्रेस को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है।
यात्रा का उद्देश्य न सिर्फ वोट चोरी का विरोध करना ही नहीं, बल्कि घर-घर अधिकार के तहत कमाई, दवाई, पढ़ाई व सामाजिक न्याय की बात होगी और महागठबंधन की सरकार बनी तो माई-बहिन मान योजना के तहत महिलाओं को 2500 रुपये प्रति महीना, गरीब परिवार को कारोबार के लिए दो लाख रुपये की सहायता, पेंशन योजना में 2500 रुपये देने, व गरीबां को 25 लाख रुपये तक का सरकारी व निजी अस्पताल में मुफ्त इलाज करा सकने की सहायता देने की बात कही जा रही है। आम आदमी पार्टी और भाजपा की घोषणाओं से प्रभावित होकर कांग्रेस एक कदम आगे बढ़ाते हुए गरीब परिवारों को तीन से पांच डिसमिल जमीन, 200 यूनिट मुफ्त बिजली और छात्रों को टैबलेट और कंप्यूटर देने का झांसा देने का प्रयास कर रही है। इसका समापन 1 सितंबर को पटना में होगा। ऐसी सूचना कांग्रेस की तरफ से आधिकारिक रूप से दी जा रही है।
राहुल इससे पहले कन्याकुमारी से कश्मीर की यात्रा कर चुके हैं जिसे भारत जोड़ो यात्रा का नाम दिया गया था। दूसरा चरण पूर्वात्तर राज्यों से प्रारंभ किया था। इन दोनों यात्राओं में राहुल को अपार जनसमर्थन मिला, लेकिन संगठन उसे वोटों में तब्दील नहीं कर सकी। कागजों पर संगठन की मजबूती के साथ वही इतिहास कांग्रेस अब बिहार में दोहराने जा रही है। प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और स्क्रीनिंग कमिटी के अध्यक्ष व सदस्यों के क्रियाकलापों से यह बात बात स्पष्ट हो चुकी है। प्रदेश में कांग्रेस अपने पुरानी सीटों का आंकड़ा भी पकड़ लेगी, इस पर भी संशय है। माकन के स्क्रीनिंग के चेयरमैन होने से बिहार कांग्रेस के सुबोध कुमार, प्रेमचंद मिश्रा और दिल्ली के छुटभैये नेता सीपी मित्तल के घर भीड़ अचानक बढ़ गई है। सीपी मित्तल पर मध्य प्रदेश कांग्रेस का कबाड़ा करने का आरोप है।
बिहार में दलित और ओबीसी के एजेंडे को लेकर बढ़ रही कांग्रेस अब एनजीओ चलाने वाले लोगों के भरोसे है। पार्टी के बड़े वोट बैंक भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ को टिकट न देने का फैसला सुनाने वाले प्रभारी अल्लावारू और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम की सार्वजनिक घोषणाओं से बिहार कांग्रेस का कितना नुकसान होगा इसका आकलन को चुनाव का नतीजों के बाद ही किया जाएगा। फिलहाल इन जाति के नेताओं ने प्रदेश कार्यालय सदाकत आश्रम से दूरी ही बना ली है। दलित एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले नकारा अध्यक्ष की वजह से छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान में अपने नाक और कान कटवा चुकी है। बारी अब बिहार की है!

रिपोर्टर

  • Aishwarya Sinha
    Aishwarya Sinha

    The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News

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