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काशी तमिल संगमम में आने वाले लोगों के लिए बाबा विश्वनाथ के साथ ही सुब्रह्मणयम भारती का घर भी बन गया है तीर्थ
-सुभाष चन्द्र
केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने 15 फरवरी,2025 को काशी तमिल संगमम के तीसरे संस्करण की औपचारिक उद्घाटन किया। पतित पावनी गंगा के तट पर नमो घाट पर दो संस्कृतियों के मिलन को सहज ही समझा जा सकता है। तमिलनाडु से संगमम में शामिल होने के लिए जो भी जत्था आता है, वो पहले गंगा में स्नान करता है। मंदिरों में पूजन-परिक्रमा आदि करता है। बाबा विश्वनाथ का आशीष लेता है। साथ ही हनुमान घाट स्थित स्वतंत्रता सेनानी और प्रख्यात कवि सुब्रह्मणयम भारती का घर जरूर जाता है।
दरअसल, सनातन धर्म में मोक्ष की कामना लिए हर व्यक्ति अपने जीवनकाल में एक बार काशी आना चाहता है। काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी। यहां आदिदेव महादेव विराजते हैं। पुराणों और वैदिक ग्रंथों में इस नगरी की काफी महत्ता बताई गई है। विदेशी भी यहां घूमने आते रहे हैं। उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे बसा यह नगरी हमेशा से लोगों को आकर्षित करता रहा है। हाल के दिनों में यहां एक नया तीर्थ बन गया है। वह तीर्थ है - स्वतंत्रता सेनानी और प्रख्यात कवि सुब्रह्मणयम भारती का घर।
यूं तो तमिलनाडु से आने वाले अधिकतर लोग हनुमान घाट और केदार घाट पर गंगा में स्नान करते हैं। यहां से वह कई मठों में पूजा अर्चना करते हैं। उसके बाद बाबा विश्वनाथ का दर्शन करते रहे हैं। लेकिन, काशी तमिल संगमम के आयोजन से हनुमान घाट पर शंकर मठ के सामने स्थित सुब्रह्मणयम भारती का घर स्वयमेव तीर्थ बन गया है। हर खास और आम उनके घर जाना चाहता है। उनकी देहरी को नमन करना चाहता है, जहां सुब्रह्मणयम भारती ने अपना लगभग पूरा जीवन बिता दिया है।
असल में, केदार घाट और हनुमान घाट को काशी में मिनी तमिलनाडु कहते हैं। यहां सैकड़ों तमिल परविर सदियों से निवास करते हैं। यहां इनकी पूरी संस्कृतिक दिखती है। पं. वेंकट रमण घनपाठी ने कहा कि काशी और तमिलनाडु का गहरा रिश्ता है। ये समागम महज एक पखवाड़े का नहीं सदियों पुराना है। पं. वेंकट रमण घनपाठी ने बताया कि काशी के हनुमान घाट, केदारघाट, हरिश्चंद्र घाट पर मिनी तमिलनाडु बसता है। जहां एक दो नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के अलग-अलग राज्यों के हजारों परिवार बसते हैं, जो इन दोनों राज्यों के मधुर रिश्ते को दर्शाते हैं।
तमिल भाषा के महाकवि सुब्रमण्यम भारती ऐसे साहित्यकार थे, जो सक्रिय रूप से ’स्वतंत्रता आंदोलन’ में शामिल रहे, जबकि उनकी रचनाओं से प्रेरित होकर दक्षिण भारत में आम लोग आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। ये ऐसे महान् कवियों में से एक थे, जिनकी पकड़ हिंदी, बंगाली, संस्कृत, अंग्रेज़ी आदि कई भाषाओं पर थी, पर तमिल उनके लिए सबसे प्रिय और मीठी भाषा थी। उनका ’गद्य’ और ’पद्य’ दोनों विधाओं पर समान अधिकार था।इन्हें महाकवि भरतियार के नाम से भी जाना जाता है। आपकी देश प्रेम की कविताएँ इतनी श्रेष्ठ हैं कि आपको भारती उपनाम से ही पुकारा जाने लगा।
सुप्रसिद्ध कवि सुब्रह्मणयम भारती के परिवार की डॉ जयंती के अनुसार, पहले भी लोग इस घर की देहरी पर आते रहे हैं। लेकिन, बीते महीने से एक दिन भी ऐसा नहीं है, जहां काफी लोग यहां न आए हों। जिस दिन कोई केंद्रीय मंत्री अथवा बड़े विद्वान यहां आते हैं, उसके दो दिन बाद तक लोगों का आना जाना बढ़ जाता है। कई लोगों के फोन भी आते हैं। हमें यह गर्व का अनुभव कराता है कि हमारे पूर्वज कितने महान रहे हैं।
सुब्रह्मणयम भारती का मानना था कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रहे। स्वतंत्र रूप से सोचना-विचारना केवल मातृभाषा के माध्यम से ही संभव हो सकता है और उसी राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली सफल हो सकती है, जो मातृभाषा के माध्यम से दी जाएगी। विलायती भाषा द्वारा पढ़ाई से राष्ट्रभाषा मन्द पड़ने लगेगी और कालान्तर में मिट ही जाएगी। आज की शिक्षा मस्तिष्क के विकास की है, जबकि मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए आत्मा का विकास महत्वपूर्ण है। हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जिसके द्वारा हम अपने अतीत के साथ न्याय करते हुए भविष्य की माँग के अनुरूप बन सकें।
सुप्रसिद्ध कवि सुब्रह्मण्य भारती जी की प्रारंभिक कविताओं में तमिल राष्ट्रवाद का उल्लेख मिलता है, किन्तु स्वामी विवेकानंद के प्रभाव में आने के बाद उनकी जीवन के उत्तरार्ध में लिखी कवितायें भारतीय हिन्दू राष्ट्रवाद का गुणगान करती हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वीकार किया कि यह परिवर्तन उनकी गुरु भगिनी निवेदिता और स्वामीजी के कारण उत्पन्न हुआ। देशभक्ति से ओतप्रोत स्वामीजी के भाषणों द्वारा पैदा की गई विचारों की चिंगारी का असर वीर सावरकर तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रभक्तों पर भी दिखाई देता है। भारती का प्रिय गान बंकिम चन्द्र का ’वन्दे मातरम्’ था। 1905 में काशी में हुए ’कांग्रेस अधिवेशन’ में सुप्रसिद्ध गायिका सरला देवी ने यह गीत गाया। भारती भी उस अधिवेशन में थे। बस तभी से यह गान उनका जीवन प्राण बन गया। मद्रास लौटकर भारती ने उस गीत का उसी लय में तमिल में पद्यानुवाद किया, जो आगे चलकर तमिलनाडु के घर-घर में गूँज उठा।
’अन्न चत्रम आथिरम वैत्तल आलयम पतिनारियम नाट्टल
अन्न याविलुम पुण्यम कोड़ो आंकोर एवैकु एलुत्तरिवित्तल’
“हज़ारों को अन्नदान करने, धर्मशालाएँ बनाने तथा हज़ार मंदिरों के निर्माण से बढ़कर
किसी एक गरीब को अक्षर का ज्ञान प्रदान करना, करोड़ों गुना अधिक पुण्य का कार्य है।”
यह उद्गार हैं, सुब्रह्मण्य भारती के, जो हर तमिल पाठक के हृदय में वास करते हैं। शिक्षा दान को सर्वोपरि मानने वाले भारती केवल एक लेखक या कवि ही नहीं, एक स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक भी थे। उनके विचारों और लेखन में अपने समय से बहुत आगे की सोच थी। वे कथनी और करनी के बीच अंतर नहीं रखते थे।
रिपोर्टर
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
Dr. Rajesh Kumar